जांबाज़ सैनिकों के लिए एक कविता...। जांबाज़ सैनिकों के लिए एक कविता...।
ऐसा प्रताप तुम्हारा था...! ऐसा प्रताप तुम्हारा था...!
तेरी यह सोंधी मिट्टी में, मैंने चलना सीखा| तेरी ये वादीयाँ और फूलों की खुशबू, जिन्हे मै ना अभी तक... तेरी यह सोंधी मिट्टी में, मैंने चलना सीखा| तेरी ये वादीयाँ और फूलों की खुशबू, ...
आज ही के दिन लहू था बिखरा पुलवामा की माटी में। आज ही के दिन लहू था बिखरा पुलवामा की माटी में।
मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ उसे बखूबी निभाना तुम...! मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ उसे बखूब...
आदर्श संस्कार अपनी अमीरता है देश की संस्कृति को बचाना है ! आदर्श संस्कार अपनी अमीरता है देश की संस्कृति को बचाना है !